Last Updated:December 11, 2025, 13:54 IST
Supreme Court में एक पिता ने 13 साल से बिस्तर पर पड़े 31 वर्षीय बेटे के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने मानवीयता के आधार पर सुनवाई करते हुए AIIMS को मेडिकल बोर्ड बनाकर रिपोर्ट देने का आदेश दिया है.
बेड पर 12 साल से पड़े बेटे के लिए स्पेशल मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा पिता. सुप्रीम कोर्ट में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है. यहां एक पिता ने अपने 31 वर्षीय बेटे के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनेशिया) की मांग की है. पिता की याचिका में कहा गया है कि उनका बेटा पिछले 13 वर्षों से बिस्तर पर पड़ा हुआ है. उसकी स्थिति ऐसी है कि वह पूरी तरह से विकलांग हो चुका है. मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एम्स दिल्ली को एक विशेष कमिटी गठित करने का निर्देश दिया है, ताकि बेटे की स्थिति की गहन जांच की जा सके. कोर्ट ने कहा कि युवक की हालत बेहद दयनीय है और कुछ न कुछ कदम उठाना जरूरी है.
पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. उन्होंने भावुक अपील में कहा, ‘मेरा बेटा पिछले 13 सालों से बिस्तर में पड़ा है, कृपया उसे इच्छामृत्यु दी जाए.’ याचिका के अनुसार, युवक एक दुर्घटना या बीमारी के कारण 12 वर्षों से स्थायी कोमा जैसी स्थिति में है. वह न तो बोल सकता है, न हिल-डुल सकता है और पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर है. पिता का कहना है कि बेटे की यह हालत देखकर परिवार टूट चुका है. अब इच्छामृत्यु ही एकमात्र मानवीय विकल्प बचा है.
कोई उम्मीद नहीं बची
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए नोएडा जिला अस्पताल की एक मेडिकल टीम की रिपोर्ट पर गौर किया. टीम ने कोर्ट को बताया कि 31 वर्षीय व्यक्ति के ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं बची है. रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वह पिछले 12 वर्षों से पूर्णतः विकलांग है और स्थायी रूप से कोमा जैसी स्थिति में है. यह रिपोर्ट विशेष रूप से पिता की याचिका के जवाब में तैयार की गई थी, जिसमें निष्क्रिय इच्छामृत्यु की मांग की गई है. निष्क्रिय इच्छामृत्यु का मतलब है कि जीवन रक्षक उपकरणों या दवाओं को हटाकर व्यक्ति को प्राकृतिक मौत की ओर जाने देना.
बुधवार तक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश
कोर्ट ने अपने फैसले में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की प्रक्रिया के दूसरे चरण में प्रवेश करने का निर्णय लिया. इसके तहत, सुप्रीम कोर्ट ने एम्स के निदेशक से अनुरोध किया कि वे युवक की जांच के लिए एक द्वितीयक चिकित्सा बोर्ड गठित करें और बुधवार तक रिपोर्ट दाखिल करें. कोर्ट ने कहा, “उस व्यक्ति की हालत दयनीय है और कुछ करना होगा. हम उसे इस हालत में जीने नहीं दे सकते.” हालांकि, एम्स की रिपोर्ट की जांच के लिए सुनवाई को अगले गुरुवार तक स्थगित कर दिया गया है.
मानवीय दृष्टिकोण जरूरी
इसके अलावा, गाजियाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) द्वारा दायर रिपोर्ट की भी कोर्ट ने जांच की. रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि युवक गंभीर बेड सोर (बिस्तर पर लंबे समय तक पड़े रहने से होने वाले घाव) से पीड़ित है, जो यह दर्शाता है कि उसकी ठीक से देखभाल नहीं की जा रही थी. सीलबंद लिफाफे में दायर इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उसके ठीक होने की कोई संभावना नहीं है. कोर्ट ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि ऐसी स्थिति में मानवीय दृष्टिकोण से निर्णय लेना आवश्यक है.
क्या भारत में इच्छा मृत्यु वैध है?
यह मामला भारत में इच्छामृत्यु के कानूनी पहलुओं पर फिर से बहस छेड़ रहा है. 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा शानबाग मामले में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध ठहराया था, लेकिन सक्रिय इच्छामृत्यु अभी भी अवैध है. इस मामले में वकील ने युवक का नाम और उसकी स्थिति के बारे में विस्तार से बताया, लेकिन गोपनीयता के कारण नाम सार्वजनिक नहीं किया गया. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट निर्णायक होती है.
पिता का दर्द
पिता की यह गुहार न केवल एक परिवार की पीड़ा को उजागर करती है, बल्कि समाज को सोचने पर मजबूर करती है कि क्या लंबी बीमारी में इच्छामृत्यु एक दया का कार्य है या जीवन का अंत? सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला इस मामले को एक नई दिशा दे सकता है. फिलहाल, सभी की नजरें एम्स की रिपोर्ट पर टिकी हैं, जो युवक के भविष्य का फैसला करेगी.
भारत में इच्छा मृत्यु वैध या अवैध?
भारत में सक्रिय इच्छा मृत्यू (Active Euthanasia) यानी डॉक्टर द्वारा दवा या इंजेक्शन देकर मरीज की जान लेना पूरी तरह अवैध है. इसे हत्या (IPC धारा 302/304) माना जाता है. लेकिन निष्क्रिय इच्छा मृत्यू (Passive Euthanasia) को सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के ऐतिहासिक Common Cause vs Union of India फैसले में वैध करार दिया है. इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति लाइलाज बीमारी (terminal illness) से पीड़ित है और उसकी हालत में सुधार की कोई उम्मीद नहीं है, तो वह लिविंग विल (अग्रिम निर्देश) बनाकर या परिवार/डॉक्टर की सहमति से लाइफ सपोर्ट सिस्टम (वेंटिलेटर, फीडिंग ट्यूब आदि) हटवा सकता है. यह
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दीप राज दीपक 2022 में न्यूज़18 से जुड़े. वर्तमान में होम पेज पर कार्यरत. राजनीति और समसामयिक मामलों, सामाजिक, विज्ञान, शोध और वायरल खबरों में रुचि. क्रिकेट और मनोरंजन जगत की खबरों में भी दिलचस्पी. बनारस हिंदू व...और पढ़ें
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New Delhi,Delhi
First Published :
December 11, 2025, 13:43 IST

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