एक्सप्लेनर: कवि काजी नजरुल इस्लाम और उस्मान हादी की विचारधारा अलग तो कब्र साथ क्यों?

1 hour ago

Sharif Osman Hadi: बांग्लादेश में युवा नेता शरीफ उस्मान हादी को राष्ट्रीय कवि काजी नजरुल इस्लाम की समाधि के पास दफन किए जाने को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. यूनुस सरकार के इस फैसले को बांग्लादेश का एक बड़ा तबका संस्कृति और धर्मनिरपेक्ष विरासत का अपमान बता रहा है. सवाल उठ रहा है कि जिन दो व्यक्तियों की विचारधाराएं एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत थीं उनकी कब्रें साथ क्यों बनाई गईं? आइए समझते है पूरा मसला...

जानें क्या है विवाद ?

हाल के महीनों में बांग्लादेश में इस्लामी छात्र संगठनों और कट्टरपंथी समूहों का प्रभाव बढ़ा है. इन्हीं समूहों ने उस्मान हादी को एक राष्ट्रीय नायक के रूप में स्थापित करने की कोशिश की थी. हादी की मौत के बाद उनके समर्थकों ने उन्हें काजी नजरुल इस्लाम के पास दफन करने की मांग की जिसे मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने स्वीकार कर लिया. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब जून 2025 में कानून संशोधन के जरिए शेख मुजीबुर्रहमान से राष्ट्रपिता का दर्जा हटाया गया था. सरकार के दस्तावेजों में उन्हें अब केवल दिवंगत राजनेता कहा जा रहा है लेकिन फिर भी यूनुस सरकार के हादी को ये सम्माम दे दिया जिसके कारण अब सरकार के इस फैसले पर सवाल उठने लगे है.

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जानिए कौन है काजी नजरुल इस्लाम ?

काजी नजरुल इस्लाम को बांग्लादेश का विद्रोही कवि कहा जाता है लेकिन उनका विद्रोह किसी एक धर्म या समुदाय के समर्थन में नहीं था. उन्होंने अन्याय, साम्प्रदायिकता और कट्टरता के खिलाफ लिखा था. उनकी रचनाओं में इस्लामी गजलों के साथ-साथ हिंदू भजन भी समान रूप से मिलते हैं. नजरुल हिंदू-मुसलमान एकता के प्रबल समर्थक थे और दोनों को एक ही डाली के दो फूल मानते थे.

क्या थी उस्मान हादी की विचारधारा?

इसके उलट, शरीफ उस्मान हादी की पहचान एक कट्टर इस्लामी राष्ट्रवाद से जुड़ी रही. वह बांग्लादेश को एक इस्लामी राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे. अवामी लीग सरकार के दौर की धर्मनिरपेक्ष नीतियों के वे मुखर विरोधी थे. उनकी राजनीति का आधार कट्टरपंथी छात्र आंदोलनों से जुड़ा रहा था.

अब समझिए क्यों हो रहा है विरोध?

धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वालों का कहना है कि हादी जैसे नेता को नजरुल इस्लाम के पास दफन करना उनकी उदार और समावेशी विरासत का अपमान है. नजरुल ने जीवन भर जिस कट्टरता का विरोध किया उसी विचारधारा से जुड़े व्यक्ति को उनके बगल में जगह देना पूरी तरह से गलत है. आलोचकों के मुताबिक, यह फैसला बांग्लादेश में बढ़ते इस्लामी कट्टरपंथ का संकेत है. उनका कहना है कि कट्टरपंथी समूह इतने प्रभावशाली हो चुके हैं कि प्रशासन, पुलिस और यहां तक कि सेना भी उनके दबाव के आगे असहाय नजर आती है. हत्या, आगजनी और हिंसा की घटनाओं के बावजूद इन समूहों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पा रही.

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धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वालों का कहना है कि काजी नजरुल इस्लाम और उस्मान हादी की विचारधाराओं के बीच गहरा वैचारिक अंतर था. इसके बावजूद दोनों की कब्रों का साथ होना केवल एक अंतिम संस्कार का फैसला नहीं बल्कि बांग्लादेश की बदलती राजनीति, संस्कृति और पहचान का प्रतीक है. यही वजह है कि देश की बड़ी सेकुलर आबादी इसे राष्ट्रकवि की विरासत के अपमान और कट्टर होते बांग्लादेश के रूप में देख रही है.

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