Last Updated:December 21, 2025, 22:42 IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुवाहाटी में एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि अगर असम के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई नहीं होते, तो कांग्रेस ने असम को पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) का हिस्सा बनने दिया होता. पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने आजादी से पहले ही असम की पहचान मिटाने की साजिश रची थी. आखिर क्या था 1946 का वो प्लान, जिसे लेकर यह विवाद छिड़ा है और उस वक्त महात्मा गांधी का क्या रुख था? आसान भाषा में समझिए पूरी कहानी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के असम दौरे पर थे.गुवाहाटी/नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी असम में थे. इस मौके पर उन्होंने असम के पहले मुख्यमंत्री भारत रत्न गोपीनाथ बोरदोलोई की जमकर तारीफ की है. पीएम ने कहा कि बोरदोलोई ने अपनी ही पार्टी (कांग्रेस) के खिलाफ खड़े होकर असम को देश से अलग होने से बचाया था. पीएम मोदी ने कहा, कांग्रेस ने आजादी से पहले ही इस जगह की पहचान मिटाने की साजिश रची थी. जब मुस्लिम लीग और ब्रिटिश सत्ता मिलकर भारत को बांटने की जमीन तैयार कर रहे थे, उस समय असम को भी पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बनाने का प्लान था. कांग्रेस भी उस साजिश का हिस्सा बनने जा रही थी. तब बोरदोलोई जी अपनी ही पार्टी के खिलाफ चट्टान बनकर खड़े हो गए. उन्होंने असम की पहचान मिटाने की इस कोशिश का विरोध किया और असम को देश से अलग होने से बचा लिया. पीएम मोदी ने जिस ‘प्लान’ का जिक्र किया, आखिर वह क्या था? 1946 में ऐसा क्या हुआ था और उस वक्त महात्मा गांधी और नेहरू का क्या कहना था? आइए जानते हैं.
क्या था 1946 का कैबिनेट मिशन प्लान?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 1940 के दशक तक, खासकर दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद, यह तय हो चुका था कि अंग्रेज अब भारत छोड़कर जाएंगे. 24 मार्च 1946 को ब्रिटिश सरकार ने अपने तीन मंत्रियों (कैबिनेट मिशन) को भारत भेजा. इनका मकसद था कि भारत की आजादी और नई सरकार बनाने का रास्ता निकालना. इस मिशन ने भारत को एक रखने की आखिरी कोशिश के तौर पर एक प्लान पेश किया. प्लान यह था कि भारत में तीन स्तर की व्यवस्था होगी. सबसे ऊपर केंद्र सरकार. सबसे नीचे राज्य और बीच में राज्यों के समूह होगा.
कहां था पेच
यही ‘ग्रुपिंग’ या समूह बनाना असम के लिए मुसीबत बन गया. अंग्रेजों ने राज्यों को तीन ग्रुप में बांटा. ग्रुप A में मध्य भारत के राज्य. ग्रुप B में उत्तर-पश्चिम के मुस्लिम बहुल राज्य जैसे पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान आए. और ग्रुप C में पूर्व के राज्य यानी यानी बंगाल और असम आ गए. समस्या यह थी कि असम को बंगाल के साथ ‘ग्रुप C’ में डाल दिया गया था. बंगाल में मुस्लिम आबादी ज्यादा थी, इसलिए यह ग्रुप मुस्लिम लीग के प्रभाव में जाने वाला था. कांग्रेस पार्टी ऊपरी तौर पर इस प्लान के लिए राजी थी, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि इससे भारत का बंटवारा रुक जाएगा और देश एक रहेगा. मुस्लिम लीग ने भी इसे मान लिया था.
असम को क्यों था एतराज?
असम के मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई इस बात के सख्त खिलाफ थे कि असम को बंगाल के साथ जोड़ा जाए. उन्हें और असम कांग्रेस के नेताओं को डर था कि इस ‘ग्रुपिंग’ के चक्कर में असम की अपनी पहचान खत्म हो जाएगी और उसे कुर्बानी का बकरा बनाकर मुस्लिम बहुल क्षेत्र (जो बाद में पूर्वी पाकिस्तान बना) में धकेल दिया जाएगा. बोरदोलोई ने ठान लिया कि वे इसका विरोध करेंगे, भले ही उनकी अपनी पार्टी (केंद्रीय कांग्रेस नेतृत्व) इसके लिए तैयार हो गई हो.
गांधी जी ने दिया था साथ
बोरदोलोई अपनी पार्टी के फैसले के खिलाफ जाने से पहले महात्मा गांधी से सलाह लेना चाहते थे. उन्होंने अपने दो भरोसेमंद साथियों को गांधी जी के पास भेजा. गांधी जी ने स्थिति को समझा और बिल्कुल साफ शब्दों में कहा कि असम को यह प्लान नहीं मानना चाहिए. गांधी जी ने सलाह दी कि असम को अपनी आवाज उठानी चाहिए और अगर जरूरत पड़े तो संविधान सभा से बाहर आ जाना चाहिए, लेकिन गलत के आगे झुकना नहीं चाहिए. गांधी जी के इस समर्थन ने बोरदोलोई को मजबूती दी. उन्होंने डटकर इस ग्रुपिंग का विरोध किया और अंततः असम को पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बनने से बचा लिया. यही वह ऐतिहासिक घटनाक्रम है जिसका जिक्र पीएम मोदी ने अपने भाषण में किया है.
(महात्मा गांधी के संकलित ग्रंथों में इस बैठक का विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसका एक लेखा-जोखा 29 दिसंबर 1946 के हरिजन के अंक में ‘असम को गांधीजी की सलाह’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था.)
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Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
December 21, 2025, 22:42 IST

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