Last Updated:December 19, 2025, 08:32 IST
Supreme Court On Daughter Property Rights: सुप्रीम कोर्ट ने बाप की संपत्ति में लड़कियों के अधिकारी से जुड़े एक मसले पर बड़ा फैसला दिया है. पिता ने वसीयत के जरिए बेटी को अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामले में टेस्टेटर यानी वसीयत लिखने वाले की इच्छा को सर्वोपरि माना जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने वसीयत और संपत्ति के अधिकार को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है.Supreme Court On Daughter Property Rights: सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के अधिकार को लेकर एक अहम फैसला दिया है. उसने टेस्टेटर (वसीयत करने वाले) की इच्छा को सर्वोपरि मानते हुए एक पिता की वसीयत को वैध ठहराया है, जिसमें उन्होंने अपनी बेटी शैला जोसेफ को समुदाय से बाहर के लड़के से शादी करने के कारण संपत्ति से वंचित कर दिया था. यह मामला लैंगिक समानता के कई ऐतिहासिक फैसलों के बावजूद वसीयत की स्वतंत्रता को अहमियत देता है. जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने केरल हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसलों को पलट दिया, जिन्होंने वसीयत को दरकिनार करते हुए एनएस श्रीधरन की संपत्ति को नौ बच्चों में बराबर बांटने का आदेश दिया था.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक श्रीधरन के नौ बच्चे थे, लेकिन 1988 में बनाई गई उनकी रजिस्टर्ड वसीयत में शैला को छोड़कर बाकी आठ बच्चों को संपत्ति सौंप दी गई थी. वजह थी शैला का समुदाय से बाहर शादी करना. जजमेंट लिखते हुए जस्टिस चंद्रन ने कहा कि वसीयत स्पष्ट रूप से साबित हो चुकी है, इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता. हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसले रद्द किए जाते हैं. शैला जोसेफ का अपने पिता की संपत्ति पर कोई दावा नहीं है, क्योंकि वसीयत से यह संपत्ति अन्य भाई-बहनों को सौंप दी गई है.
कोर्ट में शैला की ओर से सीनियर एडवोकेट पीबी कृष्णन ने तर्क दिया कि उनकी क्लाइंट को कम से कम 1/9 हिस्सा मिलना चाहिए, जो संपत्ति का नगण्य हिस्सा है. लेकिन बेंच ने स्पष्ट किया कि संपत्ति के बंटवारे में व्यक्ति की इच्छा के मामले में समानता का सवाल उठता ही नहीं. हम इक्विटी (न्यायसंगत बंटवारे) पर नहीं हैं. टेस्टेटर की इच्छा सर्वोपरि है. उसकी अंतिम वसीयत से विचलन या उसे निरस्त नहीं किया जा सकता.
वसीयत लिखने वाली की इच्छा सर्वोपरि
कोर्ट ने यह भी कहा कि वसीयत के कंटेंट पर सावधानी का नियम लागू नहीं होता, क्योंकि यह व्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता है कि वह अपनी संपत्ति कैसे बांटे. अगर वसीयत से सभी वारिसों को वंचित किया जाता, तभी कोर्ट सावधानी बरत सकता था. लेकिन यहां केवल एक बेटी को बाहर किया गया है और इसके लिए स्पष्ट वजह बताई गई है. बेंच ने टिप्पणी की कि वंचित करने की वजह बताई गई है, लेकिन उसकी स्वीकार्यता हमारे लिए सावधानी का नियम नहीं तय करती. हम टेस्टेटर की जगह खुद को नहीं रख सकते. हम अपनी राय थोप नहीं सकते; उनकी इच्छा उनकी अपनी वजहों से प्रेरित है.
फैसले में सिविल अपीलों को मंजूर करते हुए शैला की पार्टिशन सूट को खारिज कर दिया गया. मामला केरल का है, जहां श्रीधरन की मौत के बाद 1990 में भाई-बहनों ने इंजेक्शन सूट दाखिल किया था और वसीयत की कॉपी पेश की थी. शैला ने उसमें हिस्सा नहीं लिया, जिसे कोर्ट ने बाद में उनके खिलाफ माना.
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न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...और पढ़ें
First Published :
December 19, 2025, 08:21 IST

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