प्रदूषण से जंग: बीजिंग ने कौन सा रॉकेट साइंस लगाया, जो हम दिल्ली में नहीं कर पा रहे?

9 hours ago

क्या आप जानते हैं एक समय चीन की राजधानी बीजिंग दुनिया में सबसे प्रदूषित थी. हां, बीजिंग को दुनिया की स्मॉग कैपिटल कहते थे. आज हालात ऐसे नहीं हैं और यह सब बीते 10 साल में हुआ है. इधर, दिल्ली में तमाम प्रयासों के बावजूद हवा साफ नहीं हो पा रही, अब अपनी राजधानी को साफ करने के लिए सिर्फ दिल्ली नहीं, आसपास के राज्यों को भी सामूहिक रूप से सोचना होगा. यह समस्या आज नहीं तो कल सबकी होने वाली है. सवाल उठता है किया क्या जाए? एक्सपर्ट, साइंटिस्ट और दूसरे विशेषज्ञ इस पर सोचेंगे लेकिन सबसे सरल उपाय बीजिंग के उदाहरण को समझना है. बीजिंग ने अपनी हवा कैसे साफ कर ली और हम नहीं कर पा रहे हैं. वो कौन सा रॉकेट साइंस था? शुरू से शुरू करते हैं. 

एक समय घनी आबादी वाले मुल्क चीन को साइकिल किंगडम कहा जाता था. हां, इस देश में साइकिल को लेकर एक तरह की दीवानगी थी. इसका चलन बहुत ज्यादा था. तब चीन के किसी भी घर में तीन ही चीजें पसंदीदा होती थीं- साइकिल, कलाई घड़ी और सिलाई मशीन. हालांकि जब देश साइकिल से ऑटोमोबाइल (Combustion engines) की तरफ आगे दौड़ा तो कई तरह की चुनौतियां आने लगीं. इस बदलाव से पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था के लिए जटिल समस्याएं पैदा होने लगीं. सबसे ज्यादा असर बीजिंग में दिखा. नतीजा यह हुआ कि बीजिंग की जहरीली हवा और धुंध (स्मॉग) के चलते दुनियाभर में बदनामी होने लगी. 

तब प्रेशर में था बीजिंग

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तेजी से आबादी आई, गाड़ियों की संख्या बढ़ी और आर्थिक विस्तार के चलते बीजिंग का ईकोसिस्टम भयानक दबाव महसूस करने लगा था. इन सबके बावजूद अब बीजिंग राहत की सांस कैसे ले रहा है? क्योंकि उसने हाल के वर्षों में हवा की क्वालिटी में काफी सुधार किया है. आज बीजिंग का मॉडल दूसरे शहरों, खासकर दक्षिण एशिया के उन शहरों के लिए एक उदाहरण बन चुका है जो इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं. 

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2013 से प्रदूषण पर सीरियस हुआ चीन

एक तरफ चीन दुनिया का सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल प्रोड्यूसर और उपभोक्ता बनकर उभरा तो दूसरी तरफ उसे तेल की खपत बढ़ने के हानिकारक प्रभावों से जूझना पड़ा. एक रिपोर्ट बताती है कि चीन की राजधानी ने 2013 के बाद से बारीक कणों वाले प्रदूषण में 64% और सल्फर डाइऑक्साइड में 89% की कमी की है. अब उसके दूसरे शहर भी ऐसा ही कर रहे हैं. 

प्रदूषण के खिलाफ बीजिंग ने क्या-क्या किया?

1. एक रिपोर्ट के अनुसार बीजिंग ने 2005 से 'कोयले से गैस' की नीति लागू की और 2017 तक कोयले के इस्तेमाल में लगभग 11 मिलियन टन की कमी की. मतलब कोयला कम जलेगा तो प्रदूषण कम होगा. दिल्ली-नोएडा और आसपास के इलाकों में कोयले की खपत बिल्कुल घटानी होगी. 

2. चीन ने उच्च दक्षता वाले टर्मिनल ट्रीटमेंट सुविधाओं को अपग्रेड किया जिससे बहुत कम उत्सर्जन वाले मानक लागू किए गए. 

3. बीजिंग के वायु प्रदूषण नियंत्रण में गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण काफी समय से किया जा रहा है. लोग अब इसे अपना नैतिक कर्तव्य समझते हैं, दिल्ली में जब सख्ती की गई तब लोग गाड़ी का प्रदूषण जांचने भाग रहे हैं.  

4. नई गाड़ियों, पुरानी गाड़ियों और ईंधन की क्वालिटी पर ध्यान दिया गया. कानून सख्त बनाने के साथ लोगों ने उसका पालन भी किया. इसे एनसीआर में पूरी सख्ती से लागू किया जाए तो असर दिखाई देगा. 

5. बीजिंग ने स्थानीय उत्सर्जन मानकों और व्यापक नियंत्रण उपायों की सिलसिलेवार तरीके से व्यवस्था बनाई. हां, बीजिंग और उसके आसपास जिन कंपनियों से प्रदूषण ज्यादा होने की संभावना थी उन्हें शिफ्ट किया गया. नई तकनीक के जरिए प्रदूषण कम से कम हो, इसके भी उपाय किए गए. इसके तहत दिल्ली-एनसीआर में भी प्रदूषण फैलानी वाली कंपनियों की शिफ्टिंग पर सोचना ही होगा. 

6. यातायात प्रबंधन और आर्थिक प्रोत्साहन भी दिए गए. 

इन सब उपायों का असर यह हुआ कि पिछले दो दशकों में बीजिंग में गाड़ियों की संख्या तीन गुना बढ़ी लेकिन कुल प्रदूषक उत्सर्जन में बहुत कमी देखी गई. आज के समय में गाड़ियों, कोयले और खेती की फसल या ऐसी कोई चीज जलाने से प्रदूषण कम से कम हो रहा है. ये सब कुछ हुआ है 2013 और 2022 के बीच में. 

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बीजिंग की हवा में घुले प्रदूषण का विश्लेषण करें तो PM2.5 में 66.5% की कमी आई. SO2 में 88.7%  और NO2 में 58.9% की कमी आई. इसके अलावा PM10 में 50% की कमी दर्ज की गई. अब बीजिंग में रहने वाले 2.18 करोड़ लोग साफ हवा में सांस ले रहे हैं. दिल्ली के कर्ता-धर्ताओं को भी ऐसा ही कुछ करना होगा. शायद दिल्ली फिर से खुलकर सांस लेने लगे. 

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