'71 वाला हाल होगा जब महिलाओं का रेप होगा', हसीना बोलीं-आज उन यादों की गूंज

2 hours ago

“आज हम जो हिंसा देख रहे हैं… अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाना, महिलाओं पर हमले और हमारे मुक्ति संग्राम के इतिहास को मिटाने की कोशिशें… ये सब 1971 की परेशान करने वाली यादों की गूंज हैं.” News18 को द‍िए क्‍लूस‍िव इंटरव्‍यू में बांग्‍लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कुछ इसी अंदाज में बांग्‍लादेश के हालात बयां क‍िए. उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि आज बांग्लादेश में जो हो रहा है, वह सिर्फ सियासी उथल-पुथल नहीं है, बल्कि यह 1971 के उस काले दौर की वापसी की आहट है, जब पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) की जमीन को खून से लाल कर दिया था. यह वह दौर जब 2 लाख से ज्यादा महिलाओं की आबरू लूटी गई थी और आज के हालात में उस दौर के बर्बरता की गूंज सुनाई दे रही है.

शेख हसीना ने इंटरव्यू में जिस डर का जिक्र किया, वह बेबुनियाद नहीं है. उनका इशारा उन कट्टरपंथी ताकतों की तरफ है जो बांग्लादेश की आजादी के उसूलों के खिलाफ थीं. हसीना ने कहा कि 1971 में पाकिस्तानी सेना और उनके समर्थक (रजाकार) जिस मानसिकता के साथ काम कर रहे थे, आज वही मानसिकता फिर से बांग्लादेश में हावी होने की कोशिश कर रही है. 1971 में हिंदुओं को विशेष रूप से निशाना बनाया गया था. आज भी बांग्लादेश में मंदिरों और हिंदुओं के घरों पर हमले हो रहे हैं. 1971 में महिलाओं का रेप एक हथियार की तरह इस्तेमाल हुआ था. हसीना को डर है कि अराजकता के इस माहौल में महिलाओं की इज्जत फिर खतरे में है. बांग्लादेश का जन्म धर्मनिरपेक्षता और बंगाली संस्कृति के आधार पर हुआ था, न कि धर्म के आधार पर. हसीना का कहना है कि नई ताकतें इस ‘मुक्ति संग्राम’ के इतिहास को ही मिटा देना चाहती हैं.

1971: वो साल जब इंसानियत मर गई थी

शेख हसीना की चेतावनी की गंभीरता को समझने के लिए हमें 54 साल पीछे जाना होगा. 1971 का साल सिर्फ भारत-पाकिस्तान युद्ध का साल नहीं था, बल्कि यह दुनिया के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक का गवाह था.

ऑपरेशन सर्चलाइट और कत्लेआम
25 मार्च 1971 की रात को पाकिस्तानी सेना ने ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ शुरू किया. इसका मकसद था, बंगाली राष्ट्रवाद को कुचलना. पाकिस्तानी सेना ने ढाका यूनिवर्सिटी में घुसकर छात्रों और प्रोफेसरों को लाइन में खड़ा करके गोलियों से भून दिया. उनका मानना था कि बंगाली अपनी संस्कृति और भाषा को लेकर जो गर्व महसूस करते हैं, उसे खत्म करना जरूरी है.

मार्च 20़10 में ढाका विश्वविद्यालय में 1971 के नरसंहार पर एक प्रदर्शनी लगाई गई थी, ज‍िसमें तब की हकीकत बयां की गई थी. (File Photo Reuters)

2 लाख महिलाओं का दर्द

1971 के युद्ध की सबसे भयानक सच्चाई यह है कि इसमें महिलाओं के शरीर को युद्ध के मैदान की तरह इस्तेमाल किया गया. आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तानी सेना और उनके स्थानीय मददगारों (रजाकारों) ने 2 लाख से 4 लाख बंगाली महिलाओं के साथ रेप किया. यह हवस का मामला नहीं था, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति थी. इसे ज‍ीनोसाइड रेप कहा गया. मकसद था- बंगाली नस्ल को बदल देना और लोगों के मनोबल को इतना तोड़ देना कि वे कभी सिर न उठा सकें. हजारों लड़कियों को उठा लिया गया और सेना के कैंपों में रखा गया. जो महिलाएं गर्भवती हो गईं, उन्हें युद्ध के बाद समाज ने अपनाने से मना कर दिया. तब शेख मुजीबुर रहमान (हसीना के पिता) ने उन्हें बीरांगना (वीरांगना या युद्ध नायिका) का दर्जा दिया था ताकि उन्हें सम्मान मिल सके. आज जब शेख हसीना कहती हैं कि महिलाओं पर हमले 1971 की गूंज हैं, तो उनका इशारा इसी डर की तरफ है कि कट्टरपंथी ताकतें महिलाओं को फिर से निशाना बना सकती हैं.

आज के हालात और 1971 से तुलना क्यों?

शेख हसीना के सत्ता से हटने और देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश में एक वैक्यूम पैदा हो गया है. इस दौरान जो तस्वीरें सामने आईं, वे डराने वाली थीं. 1971 में एक करोड़ शरणार्थी भारत आए थे, जिनमें से ज्यादातर हिंदू थे. आज भी खबरें आ रही हैं कि डर के कारण हिंदू परिवार सीमा पार करने की सोच रहे हैं. 1971 में पाकिस्तानियों ने बंगाली संस्कृति के प्रतीकों को तोड़ा था. 2024-25 में, भीड़ ने शेख मुजीबुर रहमान (बांग्लादेश के राष्ट्रपिता) की मूर्तियों को हथौड़ों से तोड़ दिया. यह उसी “इतिहास को मिटाने” की कोशिश है जिसका जिक्र हसीना ने किया. जमात-ए-इस्लामी वह संगठन था जिसने 1971 में पाकिस्तान का साथ दिया था. आज की अंतरिम व्यवस्था में कट्टरपंथी समूहों की आवाज फिर से बुलंद हो रही है. शेख हसीना इसी को “विचारधारा की लड़ाई” कहती हैं.

हमने धर्मनिरपेक्ष देश बनाया था, अब क्या होगा?

अपने इंटरव्यू में शेख हसीना ने कहा, हमने युद्ध में इस विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी और हमने बांग्लादेश को एक मजबूत, धर्मनिरपेक्ष और सुरक्षित देश बनाया, खासकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए. हसीना का तर्क यह है कि उन्होंने अपने शासनकाल में उन युद्ध अपराधियों को फांसी की सजा दिलवाई जिन्होंने 1971 में कत्लेआम मचाया था. अब जब वे सत्ता में नहीं हैं, तो उन ताकतों को रोकने वाला कोई नहीं है.

पाक‍िस्‍तान कनेक्‍शन क्‍यों खतरनाक?

पाकिस्तान का कनेक्शन शेख हसीना ने सवालिया लहजे में यह भी संकेत दिया कि क्या पाकिस्तान फिर से वही माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहा है? बांग्लादेश की मौजूदा अशांति में कई विश्लेषक बाहरी ताकतों, विशेषकर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के हाथ होने की आशंका जताते रहे हैं. अगर कट्टरपंथी ताकतें बांग्लादेश में मजबूत होती हैं, तो यह सीधे तौर पर 1971 के ‘पाकिस्तानी एजेंडे’ की जीत होगी.

इतिहास के चौराहे पर क्‍यों बांग्लादेश?

शेख हसीना की बातें एक चेतावनी है. वह दुनिया को याद दिला रही हैं कि आजादी और लोकतंत्र बहुत नाजुक होते हैं. 1971 में बांग्लादेश ने लाखों जानें देकर जो आजादी पाई थी, वह सिर्फ एक नक्शा बदलने के लिए नहीं थी, बल्कि एक ऐसी संस्कृति को बचाने के लिए थी जहां बंगाली सिर उठा कर जी सकें.

क्या बांग्लादेश अपनी जड़ों की तरफ लौटेगा?

आज जब ढाका की सड़कों पर हिंसा, आगजनी और अल्पसंख्यकों में डर का माहौल है, तो शेख हसीना के शब्द ‘1971 की गूंज’ बहुत भारी लगते हैं. सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश अपनी जड़ों की तरफ लौटेगा, या फिर कट्टरपंथ की उस अंधेरी गुफा में जाएगा, जहां से निकलने के लिए उसने 54 साल पहले इतना बड़ा बलिदान दिया था?

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