Last Updated:December 13, 2025, 07:36 IST
West Bengal SIR: पश्चिम बंगाल में वोटर लिस्ट के विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) अभियान के दौरान कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. यहां 85 लाख मतदाताओं के पिता के नाम में गलती पाई गई है, जबकि 13.5 लाख ऐसे वोटर्स भी मिले हैं, जिनमें मां और बाप का नाम एक ही है.
वोटर लिस्ट की जांच में ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जो चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं. (फाइल फोटो)पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग की तरफ से कराए जा रहे वोटर लिस्ट के विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) अभियान अब रहस्यमयी आंकड़ों की वजह से चर्चा का विषय बन गया है. 2002 की मतदाता सूची की जांच में ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जो चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं.
चुनाव आयोग के आंतरिक विश्लेषण में लाखों मतदाताओं के पारिवारिक विवरण खासकर पिता, माता और दादा से जुड़ी जानकारियों में गंभीर विसंगतियां पाई गई हैं. यह डेटा न केवल तकनीकी गड़बड़ी की ओर इशारा करता है, बल्कि बड़े पैमाने पर गलत या संदिग्ध एंट्रीज़ की आशंका भी पैदा करता है.
85 लाख वोटर्स में पाई गई कैसी गलती?
SIR के तहत की गई जांच में सामने आया कि राज्य की 2002 की वोटर लिस्ट में दर्ज करीब 85 लाख मतदाताओं के पिता के नाम में त्रुटियां पाई गई हैं. इन मामलों में या तो नाम गलत हैं, अधूरे हैं, या फिर पारिवारिक संबंधों से मेल नहीं खाते. अधिकारियों का मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में त्रुटियां सामान्य टाइपिंग गलती से आगे की समस्या की ओर संकेत करती हैं.
माता-पिता का नाम एक ही कैसे?
सबसे हैरान करने वाला आंकड़ा यह है कि लगभग 13.5 लाख मतदाताओं के रिकॉर्ड में एक ही व्यक्ति का नाम पिता और माता दोनों कॉलम में दर्ज है. यानी एक ही परिवार में, एक सदस्य के लिए जो नाम पिता के रूप में दर्ज है, वही दूसरे सदस्य के लिए मां के रूप में दिखाया गया है. इससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह डेटा माइग्रेशन के दौरान हुई गड़बड़ी है या फिर जानबूझकर की गई गलत एंट्री.
बाप-बेटे की उम्र में इतना कम फर्क कैसे?
SIR के दौरान 11,95,230 ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां पिता की उम्र बेटे से महज 15 साल या उससे कम ज्यादा दिखाई गई है. जैविक और सामाजिक दृष्टि से यह लगभग असंभव माना जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर उम्र संबंधी विसंगतियां मतदाता सूची के निर्माण और अद्यतन की प्रक्रिया में गंभीर खामियों को दर्शाती हैं.
इसके अलावा, 24,21,133 मामलों में एक व्यक्ति के छह या उससे अधिक बच्चे दर्ज पाए गए हैं. हालांकि कुछ अपवाद संभव हो सकते हैं, लेकिन लाखों की संख्या में ऐसे रिकॉर्ड असामान्य माने जा रहे हैं. चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक, यह आंकड़ा यह संकेत देता है कि एक ही व्यक्ति की पहचान का इस्तेमाल कई मतदाताओं के लिए किया गया हो सकता है, या फिर परिवार के सदस्यों की एंट्री में भारी गड़बड़ी हुई है.
इतनी कम उम्र का दादा कैसे?
डेटा विश्लेषण में एक और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है. 3,29,152 मतदाताओं के रिकॉर्ड में दादा की उम्र पोते से 40 साल से भी कम ज्यादा दर्ज है. सामाजिक मानकों के हिसाब से यह भी अत्यंत अस्वाभाविक है और मतदाता सूची में पीढ़ीगत संबंधों की गंभीर गलतियों की ओर इशारा करता है.
चुनाव आयोग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि SIR अभियान का मकसद ही ऐसी विसंगतियों को पकड़कर मतदाता सूची को शुद्ध और विश्वसनीय बनाना है. आयोग का दावा है कि यह प्रक्रिया किसी भी राजनीतिक दल या व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती के लिए की जा रही है.
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन विसंगतियों को समय रहते ठीक नहीं किया गया, तो इससे न सिर्फ चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठेंगे, बल्कि मतदाता सूची की विश्वसनीयता भी प्रभावित होगी. SIR के दौरान सामने आए ये आंकड़े इस बात का संकेत हैं कि मतदाता डेटा के डिजिटलीकरण, अपडेट और सत्यापन की प्रक्रिया को और अधिक मजबूत व पारदर्शी बनाने की जरूरत है.
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An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें
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New Delhi,Delhi
First Published :
December 13, 2025, 07:36 IST

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