Last Updated:December 13, 2025, 06:25 IST
IAF Super-30 Programme: रूस-यूक्रेन और ईरान-इजरायल युद्ध ने दुनियाभर के देशों की आंखें खोल दी हैं. इन दोनों सशस्त्र संघर्षों का डिफेंस सेक्टर पर व्यापक असर पड़ा है. पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट, एयर डिफेंस सिस्टम और हाइपरसोनिक मिसाइल डेवलपमेंट का काम काफी तेज हो गया है. इसके साथ ही डेडली ड्रोन विकसित करने की भी होड़ मची हुई है. इसके अलावा ऐसे रडार सिस्टम डेवलप करने की प्रक्रिया तेज हो गई है जो स्टील्थ फाइटर ऑब्जेक्ट को भी डिटेक्ट कर सके.
IAF Super-30 Programme: सुपर-30 प्रोग्राम के तहत इंडियन एयरफोर्स Su-30MKI फाइटर जेट में उन्नत रडार लगाएगा. (फाइल फोटो)IAF Super-30 Programme: भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद अपने डिफेंस सिस्टम को कटिंग एज टेक्नोलॉजी के साथ अपग्रेड करने की प्रकिया शुरू कर दी है. इंडियन आर्मी, इंडियन एयरफोर्स और इंडियन नेवी अत्याधुनिक तकनीक की मदद से पूरे सिस्टम को अपडेट कर रही है. इसी क्रम में वायुसेना ने सुपर-30 प्रोग्राम पर काम करना शुरू कर दिया है. इसका उद्देश्य Su-30MKI फाइटर जेट को इस हद तक अपग्रेड करना है कि यह स्टील्थ फाइटर ऑब्जेक्ट का पता लगाकर उसे तत्काल निष्क्रिय कर सके. स्टील्थ फाइटर ऑब्जेक्ट में वे फाइटर जेट, हाइपरसोनिक मिसाइल्स या ड्रोन आते हैं, जिन्हें रडार सिस्टम से डिटेक्ट या इंटरसेप्ट नहीं किया जा सकता है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) इसमें अहम भूमिका निभा रहा है. DRDO ने गैलियम नाइट्रेट बेस्ड ऐसा रडार डेवलप किया है, जो काफी दूर से ही स्टील्थ फाइटर ऑब्जेक्ट का डिटेक्ट करने में सक्षम है. अब इसे Su-30MKI फाइटर जेट के साथ इंटीग्रेट करने पर काम चल रहा है. बता दें कि भारत अपने एयर डिफेंस सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए भी ऐसी तकनीक पर काम कर रहा है जो पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट को इंटरसेप्ट करने में कैपेबल है.
भारतीय वायुसेना (IAF) के सबसे भरोसेमंद लड़ाकू विमान सुखोई Su-30MKI को आने वाले दशकों तक प्रासंगिक बनाए रखने की दिशा में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) एक अहम तकनीक पर तेजी से काम कर रहा है. ‘विरुपाक्ष’ नाम का यह स्वदेशी AESA (एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे) रडार न सिर्फ Su-30MKI के सुपर-30 आधुनिकीकरण कार्यक्रम की रीढ़ बनेगा, बल्कि इसे स्टील्थ लड़ाकू विमानों का मुकाबला करने में भी सक्षम बनाएगा. DRDO द्वारा विकसित किया जा रहा विरुपाक्ष रडार गैलियम नाइट्राइड (GaN) तकनीक पर आधारित है, जिसे आधुनिक रडार तकनीक में एक बड़ा कदम माना जाता है. ‘इंडियन डिफेंस रिसर्च विंग’ की रिपोर्ट के अनुसार, उत्पादन के लिए तैयार इस रडार में 2,400 से ज्यादा ट्रांसमिट-रिसीव मॉड्यूल (TRM) होंगे. इतनी बड़ी संख्या में TRM होने से इसकी ताकत और रेंज दोनों ही काफी बढ़ जाती हैं. यही वजह है कि इसे क्षेत्र के सबसे शक्तिशाली फाइटर-ग्रेड AESA रडारों में गिना जा रहा है.
क्या है GaN तकनीक की ताकत?
विरुपाक्ष रडार में इस्तेमाल की जा रही GaN तकनीक पुराने GaAs आधारित रडारों की तुलना में कई गुना बेहतर मानी जाती है. यह तकनीक ज्यादा पावर एफिशिएंसी देती है, ज्यादा गर्मी सहन कर सकती है और लंबे समय तक उच्च शक्ति के सिग्नल भेजने में सक्षम होती है. इसका सीधा फायदा यह है कि रडार की पकड़ और ट्रैकिंग क्षमता काफी बढ़ जाती है, खासकर उन लक्ष्यों के खिलाफ जिनका रडार क्रॉस सेक्शन (RCS) बहुत कम होता है. स्टील्थ लड़ाकू विमानों की सबसे बड़ी खासियत यही होती है कि उनका RCS बेहद कम होता है, जिससे वे सामान्य रडार पर जल्दी नजर नहीं आते. विरुपाक्ष को खास तौर पर ऐसे ही ‘लो ऑब्जर्वेबल’ और ‘वेरी लो ऑब्जर्वेबल’ (VLO) विमानों को पकड़ने के लिए ट्यून किया जा रहा है.
IAF Super-30 Programme: विरुपाक्ष AESA रडार स्टील्थ फाइटर जेट, मिसाइल या ड्रोन का पता लगाने में सक्षम होगा. (फाइल फोटो/AP)
किसके खिलाफ खास तैयारी?
DRDO के एक्सपर्ट विरुपाक्ष के सिग्नल प्रोसेसिंग एल्गोरिदम और वेवफॉर्म जेनरेशन पर लगातार काम कर रहे हैं. मकसद यह है कि रडार बेहद कमजोर रिटर्न सिग्नल को भी शोर और क्लटर के बीच से पहचान सके. खास बात यह है कि यह रडार उन स्टेल्थ विमानों को भी पकड़ने में सक्षम होगा, जो बिना किसी बाहरी हथियार या फ्यूल टैंक के ‘क्लीन कॉन्फिगरेशन’ में उड़ रहे हों. ऐसे हालात में स्टेल्थ विमानों की पहचान करना सबसे मुश्किल माना जाता है. जानकारी के मुताबिक, विरुपाक्ष का लक्ष्य 0.01 वर्ग मीटर RCS वाले स्टेल्थ फाइटर को 200 किलोमीटर से ज्यादा दूरी से पकड़ना है. अगर यह लक्ष्य हासिल हो जाता है, तो यह भारतीय वायुसेना के लिए एक रणनीतिक बढ़त साबित होगी.
‘फर्स्ट लुक, फर्स्ट किल’ की धार तोड़ने की कोशिश
आधुनिक हवाई युद्ध में स्टेल्थ विमानों का सबसे बड़ा फायदा ‘फर्स्ट लुक, फर्स्ट किल’ माना जाता है. यानी दुश्मन को पहले देखना और हमला करना, जबकि सामने वाला विमान खतरे का अंदाजा भी न लगा पाए. आमतौर पर स्टेल्थ जेट 80 से 100 किलोमीटर के ‘नो-एस्केप जोन’ में घुसकर हमला करने की क्षमता रखते हैं. विरुपाक्ष रडार इस समीकरण को बदलने की कोशिश है. 200 किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर स्टेल्थ विमान की पहचान होने से Su-30MKI को समय रहते जवाबी कार्रवाई का मौका मिल जाएगा. इससे भारतीय लड़ाकू विमान लंबी दूरी की एयर-टू-एयर मिसाइलें, जैसे Astra Mk-II और भविष्य की Astra Mk-III, सुरक्षित दूरी से दाग सकेंगे.
सुपर-30 अपग्रेड और 2050 तक की तैयारी
विरुपाक्ष रडार सुपर-30 अपग्रेड पैकेज का अहम हिस्सा है. इस अपग्रेड में नए एवियोनिक्स, स्वदेशी मिशन कंप्यूटर, उन्नत इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सूट और कई अन्य सिस्टम शामिल हैं. इन सभी सुधारों का मकसद Su-30MKI को 2050 के दशक तक प्रभावी बनाए रखना है. इस अपग्रेड के बाद Su-30MKI सिर्फ एक भारी मल्टी-रोल फाइटर नहीं रहेगा, बल्कि एक हाई-कैपेबिलिटी काउंटर-स्टील्थ प्लेटफॉर्म के रूप में विकसित होगा. यानी यह विमान दुश्मन के सबसे आधुनिक स्टेल्थ जेट्स का भी मुकाबला कर सकेगा.
चीन-पाकिस्तान की चुनौती और भारत की जरूरत
एशिया में तेजी से बदलते सुरक्षा माहौल को देखते हुए भारत के लिए स्टेल्थ विमानों का पता लगाना बेहद जरूरी हो गया है. चीन अपने J-20 स्टेल्थ फाइटर को बड़ी संख्या में शामिल कर रहा है, जबकि पाकिस्तान आने वाले वर्षों में J-35A जैसे स्टेल्थ विमान हासिल कर सकता है. ऐसे में लंबी दूरी से स्टेल्थ डिटेक्शन भारत की प्राथमिक जरूरत बन चुकी है. DRDO का विरुपाक्ष रडार इस दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है. इसके ऑपरेशनल होने के बाद भारतीय वायुसेना दुश्मन की ‘पहले वार’ की बढ़त को काफी हद तक बेअसर कर सकेगी और हवाई युद्ध में संतुलन बनाए रख पाएगी. कुल मिलाकर, विरुपाक्ष न सिर्फ एक रडार है, बल्कि भविष्य की हवाई सुरक्षा का मजबूत आधार भी है.
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बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
December 13, 2025, 06:21 IST

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