संसद हमले की दास्तां: वो 45 मिनट जब गोलियों से दहल उठा था लोकतंत्र का मंदिर

11 hours ago

Last Updated:December 13, 2025, 03:31 IST

Parliament Attack: संसद परिसर में जब गोलियों की गूंज सुनाई दे रही थी, उस वक्त संसद भवन में गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत कई बड़े नेता और पत्रकार मौजूद थे. स्थिति को देखते हुए सभी को अंदर ही रहने को कहा गया और संसद को पूरी तरह सील कर दिया गया. संसद पर हुआ यह हमला भारत के इतिहास की गंभीर आतंकी घटनाओं में से एक माना जाता है.

 वो 45 मिनट जब गोलियों से दहल उठा था लोकतंत्र का मंदिरसंसद पर हुए आतंकी हमले में देश ने अपने 9 बहादुर सपूतों को खो दिया था. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली. तारीख थी 13 दिसंबर 2001. दिल्ली में कड़ाके की ठंड थी, लेकिन संसद भवन के अंदर का सियासी पारा चढ़ा हुआ था. शीतकालीन सत्र चल रहा था और ‘महिला आरक्षण बिल’ पर जोरदार हंगामा हो रहा था. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नेता प्रतिपक्ष सोनिया गांधी संसद से निकल चुके थे. लेकिन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत कई दिग्गज नेता और पत्रकार अभी भी अंदर मौजूद थे. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि अगले कुछ पलों में भारतीय लोकतंत्र के मंदिर पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला होने वाला है.

सफेद एंबेसडर और गेट नंबर 12
सुबह के करीब 11:30 बज रहे थे. तभी संसद भवन के गेट नंबर 12 से एक सफेद रंग की एंबेसडर कार तेजी से अंदर घुसी. कार पर गृह मंत्रालय और संसद के फर्जी स्टिकर लगे थे. कार की रफ्तार और तरीके को देखकर सुरक्षाकर्मियों को शक हुआ. वे कार के पीछे दौड़े. हड़बड़ाहट में आतंकियों की कार वहां खड़ी उपराष्ट्रपति की कार से टकरा गई. टक्कर लगते ही आतंकियों का भांडा फूट गया. कार से निकलते ही पांचों आतंकियों ने अपनी एके-47 राइफलों से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. देखते ही देखते पूरा संसद परिसर गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा.

शौर्य की गाथा और आतंकियों का अंत
हमले के तुरंत बाद संसद भवन के सारे दरवाजे बंद कर दिए गए. अंदर मौजूद सांसदों और मंत्रियों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया. बाहर सुरक्षाबलों ने मोर्चा संभाल लिया. एक आतंकी गेट नंबर 1 से सदन के भीतर घुसने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मुस्तैद जवानों ने उसे वहीं ढेर कर दिया. इसके बाद बाकी चार आतंकी गेट नंबर 4 की तरफ बढ़े. वहां हुई भीषण मुठभेड़ में तीन आतंकी मारे गए. आखिरी आतंकी गेट नंबर 5 की तरफ भागा, लेकिन वह भी सुरक्षाबलों की गोलियों का शिकार हो गया. यह खूनी खेल सुबह 11:30 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक चला.

9 जांबाजों ने दी शहादत
इस हमले में देश ने अपने 9 बहादुर सपूतों को खो दिया. आतंकियों से लोहा लेते हुए दिल्ली पुलिस के 5 जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल कमलेश कुमारी, राज्यसभा सचिवालय के 2 कर्मचारी और एक माली शहीद हो गए. इन्हीं वीरों की बदौलत आतंकी संसद भवन के मुख्य हॉल तक नहीं पहुंच सके, वरना एक बहुत बड़ी त्रासदी हो सकती थी.

साजिश का पर्दाफाश और अफजल गुरु को फांसी
हमले के महज दो दिन बाद, 15 दिसंबर 2001 को दिल्ली पुलिस ने इस साजिश का पर्दाफाश किया. मास्टरमाइंड अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, अफशान गुरु और शौकत हुसैन को गिरफ्तार किया गया. लंबी कानूनी लड़ाई चली. सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी और अफशान को बरी कर दिया, जबकि शौकत हुसैन की सजा कम कर दी गई. लेकिन हमले के मुख्य साजिशकर्ता अफजल गुरु को दोषी पाया गया. 9 फरवरी 2013 को सुबह 8 बजे दिल्ली की तिहाड़ जेल में अफजल गुरु को फांसी दे दी गई. आज भी 13 दिसंबर का दिन उन शहीदों की याद दिलाता है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर लोकतंत्र की रक्षा की.

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Rakesh Ranjan Kumar

राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...और पढ़ें

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

December 13, 2025, 03:31 IST

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