Saudi Arabia executions 2025: सऊदी अरब में 2025 में अब तक कम से कम 347 लोगों को फांसी दी जा चुकी है, जो पिछले साल 345 की संख्या से भी अधिक है. ब्रिटेन आधारित अभियान समूह रिप्रीव के अनुसार, यह किंगडम का अब तक का सबसे खूनी वर्ष है. इस वर्ष फांसी पाए गए लोगों में दो पाकिस्तानी नागरिक, एक पत्रकार, दो युवक जो अपराध के समय नाबालिग थे और पांच महिलाएं शामिल हैं. अधिकांश मामलों में फांसी गैर-घातक ड्रग अपराधों के लिए दी गई, जो कि संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय मानकों के विपरीत माना जा रहा है.
ज्यादातर विदेशी नागरिक
रिप्रीव ने बताया कि आधे से अधिक फांसी पाए लोग विदेशी नागरिक थे और यह ड्रग्स के खिलाफ युद्ध का हिस्सा माना जा रहा है. अधिकारियों ने फांसियों में वृद्धि पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. रिप्रीव की प्रमुख जीड बास्योनी ने कहा कि सऊदी अरब अब पूरी तरह से बेपरवाह होकर काम कर रहा है और यह मानवाधिकार प्रणाली का मजाक बना रहा है.
मछुआरे को भी फांसी
इस साल एक मिस्र के मछुआरे इस्सम अल-शाजली को भी फांसी दी गई, जिन्हें 2021 में सऊदी क्षेत्रीय जल में गिरफ्तार किया गया था और उन्होंने दावा किया था कि उन्हें ड्रग तस्करी में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया था. रिप्रीव के अनुसार, 96 फांसियां केवल हशीश से जुड़ी थीं. बास्योनी ने कहा कि ऐसा लगता है कि सऊदी अरब में कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसे फांसी दी जा रही है, बस समाज को संदेश भेजना महत्वपूर्ण है कि किसी मुद्दे पर जीरो टॉलरेंस है.
परिवारों को नहीं पता
रिप्रीव के अनुसार, फांसी पाए लोगों के परिवारों को अक्सर पहले से नहीं बताया जाता, उनके शव वापस नहीं दिए जाते और उन्हें दफन स्थान की जानकारी नहीं दी जाती. फांसी का तरीका सार्वजनिक नहीं किया जाता, लेकिन माना जाता है कि यह या तो सिर धड़ से अलग करना या गोलियों की फायरिंग स्क्वाड के माध्यम से होती है. कई मामलों में आरोपी नाबालिग थे और उनके न्यायालयीन परीक्षण अत्यंत अनुचित थे, जिसमें यातना और जबरन स्वीकारोक्तियों का इस्तेमाल किया गया है.
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन जैसे ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि सऊदी अरब का मानवाधिकार रिकॉर्ड बेहद खराब है और हाई लेवल की फांसियां गंभीर चिंता का विषय हैं. विशेषज्ञों ने सऊदी अरब से तुरंत फांसियों पर रोक लगाने और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करने की अपील की है. इस वर्ष पत्रकारों और प्रदर्शनकारियों पर भी फांसियां हुईं, जो प्रेस स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर हमला मानी जा रही हैं.
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